Schreiner Franz Weber zeigt auf seine ehemalige Wohnung. Nach 45 Jahren wurde er rausgeschmissen. Und die Vermieter machen Reibach mit Euro-08-Fans.
Die Anzeige der Firma Swiss Immo Trust AG richtet sich an Euro-08-Fans. «Funktionell eingerichtete Wohnung mit acht Schlafplätzen. Ideal für Gruppen.» Adresse: Talstrasse 43 in Oberwil BL.
Hier wohnte der pensionierte Schreiner Franz Weber (69) – fast ein halbes Jahrhundert lang. «Jetzt haben sie mich rausgeschmissen», sagt er konsterniert. «Ich kann es immer noch nicht glauben. Es geht nur ums Geld, unsere Schicksale zählen nichts. Bald schlafen Euro-Hooligans in meiner Wohnung.»
28 Mietparteien erhielten an der Talstrasse 43, 45 sowie Langegasse 40 die Kündigung. Sie müssen ihr vertrautes Umfeld verlassen – die Siedlung wird totalsaniert.
Drei Monate hatte Franz Weber Zeit, um eine neue Wohnung zu suchen. Er wurde ein paar 100 Meter weiter fündig. Zu einem höheren Preis, aber immerhin in derselben Gegend. «Wir konnten uns nicht wehren. Ich fühle mich immer noch machtlos und ausgenutzt.»
Weniger Glück hatte Edeltraud Künzli (65). Die krebskranke Rentnerin konnte kaum gehen zum Zeitpunkt, als die Kündigung kam. Von Operationen geschwächt brauchte sie dreimal am Tag die Unterstützung der Spitex.
«Ich wusste zuerst nicht, wie ich das alles schaffen sollte. Ich war nahe daran aufzugeben», erzählt Edeltraud Künzli. Zum Glück hat sie noch ihre Tochter. Tatjana nahm spontan eine Woche Ferien.
Jetzt wohnt die Rentnerin wieder in Therwil, von wo sie vor 24 Jahren nach Oberwil gezogen ist. Dass jetzt Euro-08-Fans in das Haus ziehen sollen, findet die zweifache Mutter und vierfache Grossmutter schrecklich. «Ich bin so wütend. Die Besitzer sind einfach skrupellose Menschen.»
Im März hat die Swiss Immo Trust AG das Baugesuch eingereicht. Bewilligt ist es noch nicht.
Die Hausbesitzer haben die Mieter aber trotzdem schon rausbugsiert. Gerade rechtzeitig, um während der Euro 08 so richtig Kasse zu machen. Eine Altbauwohnung, die bis anhin um die 900 Franken kostete, spielt 415 Franken ein – pro Tag. Das ergibt eine stolzen Monatsmiete von 12450 Franken. Einzige Kosten: Die Vermieter schleppen acht Betten in jede Fan-Wohnung.
Die Swiss Immo Trust AG erklärt schriftlich, die Vermietung der Wohnungen an Euro-08-Fans habe nichts mit der Tatsache zu tun, dass die Wohnungen umfassend saniert werden müssen.
Ausserdem: «Der Bettpreis (inkl. Frühstück) in diesen Ferienwohnungen beträgt pro Person und Nacht 75 Franken. Bei der Festsetzung der Höhe des Preises haben wir uns an den Preisen von Jugendherbergen orientiert.»
Dass die Wohnungen als Tages-Zimmer während der Euro angeboten werden, stört auch den Mieterverband. «Es ist schlicht eine Frechheit», sagt Urs Thrier, Geschäftsführer der Sektion Baselland und Dorneck-Thierstein SO.
Hier werde nicht nur günstiger Wohnraum vernichtet. «Die Wohnungen auch noch für die Euro zu vermieten, ist ein Affront gegenüber den ehemaligen Mietern», sagt Thrier. Die Zwischennutzung sei aber legal. Man könne keine Rechtsmittel dagegen ergreifen.
Oberwil ist von Stadtzentrum Basel nur fünf Kilometer entfernt. Entsprechend gross ist die Nachfrage nach Wohnungen.
Soeben die Kündigung erhalten haben auch 60 Mietparteien der Überbauung «Im Wasen» in Oberwil. 6 Häuser werden abgerissen. Auch hier sind fast ausschliesslich Mieter mit kleinen Einkommen betroffen. Die Wohnblocks aus den 40er-Jahren werden durch Eigentumswohnungen ersetzt.
Das Geschäft mit der Euro 08 hat man «Im Wasen» allerdings verpasst: Die meisten Mieter fechten die Kündigung vor der Schlichtungsstelle Liestal an.
Monday, March 18, 2019
Tuesday, March 12, 2019
国家税务总局:全面落实深化增值税改革减税安排
中新社北京3月12日电 (记者 赵建华)中国今年的《政府工作报告》指出要实施更大规模的减税,并提出了2019年深化增值税改革的具体安排和工作要求。中国国家税务总局有关负责人12日表示,税务机关将全面落实《政府工作报告》中提出的深化增值税改革减税安排部署,助力中国经济高质量发展。
《政府工作报告》指出,将制造业等行业现行16%的增值税税率降至13%,将交通运输业、建筑业等行业现行10%的增值税税率降至9%,保持6%一档的税率不变,继续向推进税率三档并两档、税制简化方向迈进。
为确保降低增值税税率等各项改革措施如期落实到位、落地生根,中国国家税务总局近日印发《关于做好2019年深化增值税改革工作的通知》,从汇集改革合力、做实改革举措、确保改革成效三方面提出了12项具体举措。
国家税务总局局长王军强调,深化增值税改革是2019年实施更大规模减税降费的“重头戏”,是减轻企业负担、激发市场活力的重大举措。各级税务机关要把贯彻落实好增值税改革、切实减轻实体经济税收负担,摆在重中之重的突出位置,实打实、硬碰硬,不折不扣狠抓落实,让企业和人民群众有实实在在的获得感。
确保减税降费政策措施落地生根是2019年税收工作的主题,也是纳税服务工作的重心。国家税务总局纳税服务司司长孙玉山介绍,税务部门从便利纳税人的角度出发,已经推出了一系列简化申报流程、提高办税效率的举措,力求以更多的办税便利促进纳税人更好享受增值税改革红利。
国家税务总局将指导各地优化办税服务,紧扣纳税人诉求,回应纳税人关切。各级税务机关还要确保政策施行后,纳税人能够及时、准确、顺利开具增值税发票。
国家税务总局已将深化增值税改革等减税降费重点工作纳入督查督办和绩效考评,各级税务机关也将对改革工作逐项梳理,逐项分解,明确责任部门和责任人员,完善督查和考评内容。各级税务机关还将组织开展税务系统内部和面向纳税人的辅导培训。
国家税务总局货物和劳务税司司长王道树表示,深化增值税改革措施政策性强、涉及面广,既涉及税务机关的准备,又涉及相关服务单位的支持,也需要纳税人的配合。(完)
《政府工作报告》指出,将制造业等行业现行16%的增值税税率降至13%,将交通运输业、建筑业等行业现行10%的增值税税率降至9%,保持6%一档的税率不变,继续向推进税率三档并两档、税制简化方向迈进。
为确保降低增值税税率等各项改革措施如期落实到位、落地生根,中国国家税务总局近日印发《关于做好2019年深化增值税改革工作的通知》,从汇集改革合力、做实改革举措、确保改革成效三方面提出了12项具体举措。
国家税务总局局长王军强调,深化增值税改革是2019年实施更大规模减税降费的“重头戏”,是减轻企业负担、激发市场活力的重大举措。各级税务机关要把贯彻落实好增值税改革、切实减轻实体经济税收负担,摆在重中之重的突出位置,实打实、硬碰硬,不折不扣狠抓落实,让企业和人民群众有实实在在的获得感。
确保减税降费政策措施落地生根是2019年税收工作的主题,也是纳税服务工作的重心。国家税务总局纳税服务司司长孙玉山介绍,税务部门从便利纳税人的角度出发,已经推出了一系列简化申报流程、提高办税效率的举措,力求以更多的办税便利促进纳税人更好享受增值税改革红利。
国家税务总局将指导各地优化办税服务,紧扣纳税人诉求,回应纳税人关切。各级税务机关还要确保政策施行后,纳税人能够及时、准确、顺利开具增值税发票。
国家税务总局已将深化增值税改革等减税降费重点工作纳入督查督办和绩效考评,各级税务机关也将对改革工作逐项梳理,逐项分解,明确责任部门和责任人员,完善督查和考评内容。各级税务机关还将组织开展税务系统内部和面向纳税人的辅导培训。
国家税务总局货物和劳务税司司长王道树表示,深化增值税改革措施政策性强、涉及面广,既涉及税务机关的准备,又涉及相关服务单位的支持,也需要纳税人的配合。(完)
Wednesday, March 6, 2019
जस्टिस बोबडे ने कहा- बाबर ने जो किया उसे कोई नहीं बदल सकता, पर हम मसला सुलझा सकते हैं
नई दिल्ली. समय बचाने के लिए क्या अयोध्या विवाद को मध्यस्थ के पास भेजा जा सकता है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। संवैधानिक पीठ ने सभी पक्षकारों से मध्यस्थता पैनल के लिए बुधवार को ही नाम देने के लिए कहा है ताकि जल्द ही आदेश निकाला जा सके।
इससे पहले 26 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में मध्यस्थ के जरिए विवाद का समाधान निकालने पर सहमति जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि एक फीसदी गुंजाइश होने पर भी मध्यस्थ के जरिए मामला सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए।
कोर्ट और वकीलों के सवाल-जवाब
जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, ‘‘यह दिमाग, दिल और रिश्तों को सुधारने का प्रयास है। हम मामले की गंभीरता को लेकर सचेत हैं। हम जानते हैं कि इसका क्या असर होगा। हम इतिहास भी जानते हैं। हम आपको बताना चाह रहे हैं कि बाबर ने जो किया उस पर हमारा नियंत्रण नहीं था। उसे कोई बदल नहीं सकता। हमारी चिंता केवल विवाद को सुलझाने की है। इसे हम जरूर सुलझा सकते हैं।’’
"मध्यस्थता के मामले में गोपनीयता बेहद अहम है, लेकिन अगर किसी भी पक्ष ने बातों को लीक किया तो हम मीडिया को रिपोर्टिंग करने से कैसे रोकेंगे? अगर जमीन विवाद पर कोर्ट फैसला दे तो क्या सभी पक्षों को मान्य होगा?"
इसके जवाब में मुस्लिम पक्षकार के वकील दुष्यंत ने कहा कि इसके लिए विशेष आदेश दिया जा सकता है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अयोध्या विवाद दो पक्षों के बीच का नहीं बल्कि यह दो समुदायों से संबंधित है। हम उन्हें मध्यस्थता पर बाध्य कैसे कर सकते हैं? ये बेहतर होगा कि आपसी बातचीत से मसला हल हो पर कैसे? ये अहम सवाल है।
रामलला की तरफ से पैरवी कर रहे वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि वाली जगह आस्था से जुड़ी है। इस पर समझौता नहीं किया जा सकता। हम और कहीं भी मस्जिद के निर्माण के लिए चंदा जुटाने को तैयार हैं। वैद्यनाथन ने मध्यस्थता का विरोध करते हुए कहा कि इस तरह के आस्था और भरोसे से जुड़े मामलों में समझौता नहीं किया जा सकता।
हिंदू पक्षकारों की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने मध्यस्थता का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह विवाद धार्मिक है और लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। यह केवल प्रॉपर्टी विवाद नहीं है।
अनुवाद को जांचने का समय मांगा था
इससे पहले चीफ जस्टिस ने अयोध्या मामले से जुड़े दस्तावेजों की अनुवाद रिपोर्ट पर सभी पक्षों से राय मांगी थी। एक पक्ष की तरफ से पेश वकील राजीव धवन का कहना था कि अनुवाद की कापियों को जांचने के लिए उन्हें 8 से 12 हफ्ते का समय चाहिए। रामलला की तरफ से पेश एस वैद्यनाथन ने कहा कि दिसंबर 2017 में सभी पक्षों ने दस्तावेजों के अनुवाद की रिपोर्ट जांचने के बाद स्वीकार की थी। दो साल बाद ये लोग सवाल क्यों उठा रहे हैं?
14 अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर हो रही है। अदालत ने सुनवाई में केंद्र की उस याचिका को भी शामिल किया है, जिसमें सरकार ने गैर विवादित जमीन को उनके मालिकों को लौटाने की मांग की है।
5 जजों की बेंच कर रही सुनवाई
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। इसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं।
2.77 एकड़ परिसर के अंदर है विवादित जमीन
अयोध्या में 2.77 एकड़ परिसर में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद है। इसी परिसर में 0.313 एकड़ का वह हिस्सा है, जिस पर विवादित ढांचा मौजूद था और जिसे 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था। रामलला अभी इसी 0.313 एकड़ जमीन के एक हिस्से में विराजमान हैं। केंद्र की अर्जी पर भाजपा और सरकार का कहना है कि हम विवादित जमीन को छू भी नहीं रहे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 साल पहले फैसला सुनाया था
इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2:1 के बहुमत से 2.77 एकड़ के विवादित परिसर के मालिकाना हक पर फैसला सुनाया था। यह जमीन तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी गई थी। हिंदू एक्ट के तहत इस मामले में रामलला भी एक पक्षकार हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।
इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस तभी से लंबित है।
इससे पहले 26 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में मध्यस्थ के जरिए विवाद का समाधान निकालने पर सहमति जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि एक फीसदी गुंजाइश होने पर भी मध्यस्थ के जरिए मामला सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए।
कोर्ट और वकीलों के सवाल-जवाब
जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, ‘‘यह दिमाग, दिल और रिश्तों को सुधारने का प्रयास है। हम मामले की गंभीरता को लेकर सचेत हैं। हम जानते हैं कि इसका क्या असर होगा। हम इतिहास भी जानते हैं। हम आपको बताना चाह रहे हैं कि बाबर ने जो किया उस पर हमारा नियंत्रण नहीं था। उसे कोई बदल नहीं सकता। हमारी चिंता केवल विवाद को सुलझाने की है। इसे हम जरूर सुलझा सकते हैं।’’
"मध्यस्थता के मामले में गोपनीयता बेहद अहम है, लेकिन अगर किसी भी पक्ष ने बातों को लीक किया तो हम मीडिया को रिपोर्टिंग करने से कैसे रोकेंगे? अगर जमीन विवाद पर कोर्ट फैसला दे तो क्या सभी पक्षों को मान्य होगा?"
इसके जवाब में मुस्लिम पक्षकार के वकील दुष्यंत ने कहा कि इसके लिए विशेष आदेश दिया जा सकता है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अयोध्या विवाद दो पक्षों के बीच का नहीं बल्कि यह दो समुदायों से संबंधित है। हम उन्हें मध्यस्थता पर बाध्य कैसे कर सकते हैं? ये बेहतर होगा कि आपसी बातचीत से मसला हल हो पर कैसे? ये अहम सवाल है।
रामलला की तरफ से पैरवी कर रहे वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि वाली जगह आस्था से जुड़ी है। इस पर समझौता नहीं किया जा सकता। हम और कहीं भी मस्जिद के निर्माण के लिए चंदा जुटाने को तैयार हैं। वैद्यनाथन ने मध्यस्थता का विरोध करते हुए कहा कि इस तरह के आस्था और भरोसे से जुड़े मामलों में समझौता नहीं किया जा सकता।
हिंदू पक्षकारों की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने मध्यस्थता का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह विवाद धार्मिक है और लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। यह केवल प्रॉपर्टी विवाद नहीं है।
अनुवाद को जांचने का समय मांगा था
इससे पहले चीफ जस्टिस ने अयोध्या मामले से जुड़े दस्तावेजों की अनुवाद रिपोर्ट पर सभी पक्षों से राय मांगी थी। एक पक्ष की तरफ से पेश वकील राजीव धवन का कहना था कि अनुवाद की कापियों को जांचने के लिए उन्हें 8 से 12 हफ्ते का समय चाहिए। रामलला की तरफ से पेश एस वैद्यनाथन ने कहा कि दिसंबर 2017 में सभी पक्षों ने दस्तावेजों के अनुवाद की रिपोर्ट जांचने के बाद स्वीकार की थी। दो साल बाद ये लोग सवाल क्यों उठा रहे हैं?
14 अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर हो रही है। अदालत ने सुनवाई में केंद्र की उस याचिका को भी शामिल किया है, जिसमें सरकार ने गैर विवादित जमीन को उनके मालिकों को लौटाने की मांग की है।
5 जजों की बेंच कर रही सुनवाई
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। इसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं।
2.77 एकड़ परिसर के अंदर है विवादित जमीन
अयोध्या में 2.77 एकड़ परिसर में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद है। इसी परिसर में 0.313 एकड़ का वह हिस्सा है, जिस पर विवादित ढांचा मौजूद था और जिसे 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था। रामलला अभी इसी 0.313 एकड़ जमीन के एक हिस्से में विराजमान हैं। केंद्र की अर्जी पर भाजपा और सरकार का कहना है कि हम विवादित जमीन को छू भी नहीं रहे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 साल पहले फैसला सुनाया था
इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2:1 के बहुमत से 2.77 एकड़ के विवादित परिसर के मालिकाना हक पर फैसला सुनाया था। यह जमीन तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी गई थी। हिंदू एक्ट के तहत इस मामले में रामलला भी एक पक्षकार हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।
इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस तभी से लंबित है।
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